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न पटाखे न पराली… फिर भी Delhi में ज़हरीली हवा क्यों?

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हर साल सर्दियों के आते ही दिल्ली की हवा जहरीली हो जाती है। इस बार न पटाखे जले, न पराली, फिर भी दिल्ली की सांसें भारी क्यों हैं? आखिर वो कौन-से कारण हैं जो राजधानी को गैस चेंबर बना रहे हैं? प्रदूषण अब सिर्फ पराली या पटाखों का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह हमारे रोज़मर्रा के जीवन, वाहनों, निर्माण कार्यों और बदलते मौसम से गहराई से जुड़ा है। हवा में घुला यह ज़हर न केवल आंखों में जलन और खांसी का कारण बन रहा है, बल्कि बच्चों और बुज़ुर्गों के फेफड़ों पर भी गहरा असर डाल रहा है। आइए जानें, जब सब कुछ नियंत्रित दिख रहा है, तब भी दिल्ली की हवा इतनी खतरनाक क्यों है और इसका हल क्या हो सकता है।

मौसम का बदलता मिज़ाज — हवा का रुकना

ठंड के मौसम में हवा की रफ्तार धीमी पड़ जाती है। यही कारण है कि प्रदूषक तत्व (PM2.5 और PM10) जमीन के पास जमा हो जाते हैं।
जब हवा बहती नहीं, तो धूल, धुआं और जहरीली गैसें ऊपर उठकर फैल नहीं पातीं। नतीजा — दिल्ली के ऊपर बनता है एक ‘स्मॉग डोम’, जो शहर को घुटन भरा बना देता है।

वाहनों का धुआं — सबसे बड़ा अपराधी

दिल्ली में हर दिन लगभग 1.2 करोड़ वाहन सड़कों पर चलते हैं। इनमें से बड़ी संख्या पुराने डीज़ल वाहनों की है, जो हवा में सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड छोड़ते हैं।
भले ही पराली न जली हो, लेकिन वाहनों से निकलने वाला धुआं हर दिन दिल्ली की हवा में जहर घोल रहा है।

क्या कहती हैं रिपोर्ट्स?

  • दिल्ली के कुल प्रदूषण में 40% से ज़्यादा हिस्सा वाहनों का है।

  • बसों और ऑटो जैसे सार्वजनिक साधनों की संख्या कम है, इसलिए लोग निजी वाहनों पर निर्भर हैं।

निर्माण कार्य और धूल का आतंक

दिल्ली और NCR में लगातार निर्माण कार्य (construction) चल रहा है — मेट्रो, हाईवे, हाउसिंग प्रोजेक्ट्स आदि।
इनसे निकलने वाली धूल हवा में मिलकर PM2.5 का स्तर बढ़ा देती है।
कई बार नियमों के बावजूद साइट्स पर धूल को रोकने के लिए पानी का छिड़काव या कवरिंग नहीं की जाती।

औद्योगिक क्षेत्र और स्थानीय फैक्ट्रियां

  • दिल्ली के आसपास कई इंडस्ट्रियल एरिया हैं — जैसे नरेला, बवाना, गाज़ियाबाद, फरीदाबाद और गुरुग्राम।
  • कई छोटी फैक्ट्रियां अब भी कोयला और डीज़ल जनरेटर से चलती हैं।
  • जब हवा धीमी होती है, तो इन फैक्ट्रियों का धुआं दिल्ली के ऊपर जमा हो जाता है।
  • इस वजह से भले ही पटाखे और पराली न जले, लेकिन हवा में ज़हर फैला रहता है।

घरेलू गतिविधियाँ और ऊर्जा का गलत इस्तेमाल

शायद यह सुनकर हैरानी हो, लेकिन घरों में खाना बनाने, हीटर चलाने, या कचरा जलाने से भी प्रदूषण बढ़ता है। कई जगहों पर लोग अभी भी सर्दियों में कचरा या लकड़ी जलाकर गर्मी लेते हैं। यह “local pollution” दिल्ली के कुल AQI को और खराब करता है।

दिल्ली की भौगोलिक स्थिति — चारों तरफ से घिरी हुई

दिल्ली एक ‘लैंडलॉक्ड सिटी’ है — यानि समुद्र या खुले मैदानों से घिरी नहीं है जहां हवा आसानी से बह सके। इसके आसपास हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब के औद्योगिक शहर हैं, जिनका प्रदूषण भी दिल्ली में घुस आता है। इसलिए भले ही दिल्ली खुद पराली न जलाए, पर पड़ोसी राज्यों का असर उस पर पड़ता ही है।

पेड़ों की कमी — फेफड़ों की घटती ताकत

दिल्ली में हर साल लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं — कभी मेट्रो के लिए, कभी हाइवे के लिए।
जहां पेड़ नहीं होंगे, वहां ऑक्सीजन कम और धूल ज़्यादा होगी।
पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते हैं और हवा को शुद्ध करते हैं, लेकिन हरियाली घटने से प्रदूषण का असर और बढ़ता है।

सरकार की कोशिशें और उनकी सीमाएँ

दिल्ली सरकार ने कई कदम उठाए हैं जैसे—

  • Odd-Even स्कीम

  • Anti-smog guns

  • Construction bans

  • Water sprinkling और vacuum cleaning

पर ये कदम तब तक सीमित असर ही दिखाते हैं जब तक पड़ोसी राज्यों और नागरिकों का सहयोग नहीं मिलता। प्रदूषण को रोकने के लिए क्षेत्रीय और व्यक्तिगत दोनों स्तर पर प्रयास ज़रूरी हैं।

क्या समाधान हो सकता है?

  1. Public Transport को बढ़ावा दें: मेट्रो, इलेक्ट्रिक बसें और साइकिलिंग को प्रोत्साहित करें।

  2. पुराने वाहनों पर सख्ती: 10 साल पुराने डीज़ल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को सड़कों से हटाया जाए।

  3. हरियाली बढ़ाएं: नई सड़कों और कॉलोनियों के साथ पेड़ लगाना अनिवार्य किया जाए।

  4. Clean Energy का इस्तेमाल: फैक्ट्रियों और घरों में गैस या बिजली आधारित सिस्टम अपनाएं।

  5. जनजागरण: लोग खुद जागरूक हों कि प्रदूषण सिर्फ सरकार की नहीं, सबकी जिम्मेदारी है।

निष्कर्ष:

दिल्ली की ज़हरीली हवा सिर्फ पटाखों या पराली का नतीजा नहीं है। यह उस लाइफस्टाइल का परिणाम है, जिसमें हमने सुविधा के लिए प्रकृति की अनदेखी की है। जब तक हम वाहनों पर निर्भर रहेंगे, पेड़ों को काटते रहेंगे, और छोटे-छोटे प्रदूषण स्रोतों को अनदेखा करेंगे — तब तक दिल्ली की हवा साफ नहीं होगी।

अब वक्त है सोच बदलने का।
क्योंकि अगर हम आज नहीं जागे, तो कल सिर्फ मास्क नहीं, ऑक्सीजन टैंक हमारी ज़रूरत बन जाएंगे।

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