रोचक खबर

नालंदा विश्वविद्यालय को 1300 साल पुराना छात्र मिला ! पूर्नजन्म पर कई धर्मो में राय !

पूर्नजन्म पर कई धर्मो में अलग अलग राय है कोई धर्म मानता है कि ऐसा होता है तो किसी धर्म में इसके बारे में कोई उल्लेख नहीं है। भारत की सभ्यता और संस्कृति बहुत पुरानी मानी जाती है। यह कहा जाता है कि जब युरोप और अमेरिका में सभ्यता विकसित नहीं हुयी थी तब भारत में वेदों और शिक्षा का बहुत विकास हो चुका था। भारत में हजारों साल पहले ही नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय स्थापित हो गये थे जिनमें दूर दूर देशों से आकर विद्यार्थी पढाई किया करते थे। अब हजारों साल बाद नालन्दा का एक विद्यार्थी चर्चाओं में बना हुआ है। जिम्मी ओंगचुक जो कि अभी तीन साल के है यह बताते है कि वे पूर्वजन्म में नालन्दा विश्वविद्यालय में पढ चुके है। जिम्मी ओंगचुक भूटान के राजपरिवार से ताल्लूक रखते है।

भूटान के राजपरिवार से है जिम्मी ओंगचुक

भूटान की राजमाता जब नांलदा भ्रमण के लिये अपने परिवार के साथ पहॅुची तो उनके नाती जिम्मी जिटेन ओंगचुक वहां के अवशेषों और संरचनाओं के बारे में बताने लगा। अपने को पिछले जन्म में नालन्दा के विद्यार्थी बताने वाले जिम्मी ओंगचुक ने यह भी बताया कि वह किस कमरे में बैठकर पढता था और किस कमरे में रात को वह सोता था। भूटान की राजमाता बताती है कि जब जिम्मी ओंगचुक केवल एक साल का था तब से ही वह नालन्दा के बारे में बातें करता था। वह उन सभी जगहों के बारे में बताता था जो कि नालन्दा में मौजुद है।

पिछले जन्म में पढने के किये दावे

जिम्मी ओंगचुक की बतायी जगहों को वहां पर देखकर सभी परिवारजन हैरान है। जिम्मी ओंगचुक अभी मात्र तीन साल के है लेकिन वे बताते है कि भगवान बुद्ध की कृपा से उनका जन्म एक राजघराने में हुआ है। पिछले जन्म में उन्होनें नालन्दा में कई वर्षो तक शिक्षा ग्रहण की थी। उन्हें आज भी अपने पुराने जन्म की अधिकतर बातें याद है। पिछले जन्म की उनकी बातें सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो जाते है।

गुप्त शासकों ने कराया था निर्माण

नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण पांचवी सदी में गुप्त काल के दौरान हुआ था। गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम ने इसका निर्माण 450 से 470 ई के बीच कराया था। गुप्त शासकों के बाद भी हर काल में स्थानीय शासकों ने इसके विकास को जारी रखा। महान शासक हर्षवर्धन और पाल शासकों ने भी इसका संरक्षण किया। भारत ही नहीं विदेशों से भी इस विश्वविद्यालय में शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। यह एक बहुत बडे क्षेत्र में फैला आवासिय विश्वविद्यालय था। जिसमें एक समय में 10,000 विद्यार्थी विद्या ग्रहण करते थे। और करीब 1500 के करीब अध्यापक पढाते थे।

दूर दूर देशों से विधाथी आकर करते थे शिक्षा ग्रहण
नालंदा विश्वविद्यालय में धर्म, व्याकरण, शल्य विद्या, ज्योतिष, चिकित्सा शास्त्र और योग शास्त्र की शिक्षा दी जाती थी। विश्वविद्यालय में धर्मगुंज नाम का पुस्तकालय था जो उस समय दुनिया का सबसे बडा पुस्तकालय माना जाता था। इनमें हजारों की संख्या में पुस्तकें और संस्मरण थे। लेकिन 1193 में हुय इस्लामिक आक्रमणकारियों ने इस नष्ट कर दिया। कहा जाता है इसको नष्ट करने के लिये इस्लामिक आक्रमणकारियों ने इस पुस्तकालय में आग लगा दी थी जो करीब छ महिने तक जलती रही। आज भी नालंदा की कई प्राचीन संरचनाएं मौजुद है।

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का था विचार
वर्ष 2007 में नांलदा विश्वविद्यालय के प्राचीन महत्व को देखते हुये बिहार सरकार ने इसकी पूर्नस्थापना के प्रयास किये। 2010 में केन्द्रिय कानून बन जाने के कारण यह विश्वविद्यालय केन्द्र सरकार के अधीन आ गया। इस विश्वविद्यालय के पुर्नर्निमाण का विचार भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के मन में आया था। और 1 सिंतबर 2014 को वह दिन आया जब शिक्षा के इस प्राचीनतम विश्वविद्यालय को आधुनिक भारत से जोडा गया। बिहार सरकार ने भी एक बार केन्द्र सरकार को चिट्ठी लिखकर इसके मुल स्वरूप से छेडछाड न करने की अपील की। दिसंबर 2016 में अमृत्य सेन कि चिट्ठी से विवाद गहरा गया था जिसमें उन्होनें लिखा था कि सरकार नहीं चाहती कि मैं आगे चांसलर पद पर बना रहुॅ।

Related posts

दुनिया के सबसे अमीर शख्स की बेटी की लाइफ स्टाइल देखने के लिए क्लिक करें

Admin

अजगर से भीड़ गया एक बहादुर गार्ड, जाने क्या हुआ उसके साथ

Admin

बड़े बड़े स्विमर्स को पीछे छोड़, 1 साल की बच्ची की कमाल की स्विमिंग, वायरल वीडियो

Admin

8 comments

Leave a Comment