भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर मंदिर, हर मूर्ति और हर परंपरा के पीछे कोई न कोई रहस्य, आस्था और इतिहास छिपा होता है। इन्हीं रहस्यमयी स्थलों में से एक है पुरी का जगन्नाथ मंदिर, जो अपनी दिव्यता, स्थापत्य कला और परंपराओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि श्रद्धालु इस मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर कदम नहीं रखते? यह सुनने में भले ही सामान्य लगे, लेकिन इसके पीछे छिपा है एक गहरा आध्यात्मिक रहस्य। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि आखिर ऐसा क्यों होता है और क्या है तीसरी सीढ़ी का रहस्य।
जगन्नाथ मंदिर का परिचय
ओडिशा के पुरी जिले में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ जी को समर्पित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते हैं, विशेष रूप से रथ यात्रा के समय। इस मंदिर की स्थापत्य कला, परंपराएं और रहस्य वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को भी हैरान करते हैं। लेकिन जो बात सबसे ज़्यादा श्रद्धा और आश्चर्य से जुड़ी है, वह है मंदिर की सीढ़ियों में छिपा रहस्य, विशेषकर तीसरी सीढ़ी का।
मंदिर की सीढ़ियों की विशेषता
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने के लिए श्रद्धालुओं को कई सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। इन सीढ़ियों की संख्या लगभग 22 बताई जाती है। लेकिन इनमें से तीसरी सीढ़ी एकदम विशेष मानी जाती है, और यह ऐसी सीढ़ी है जिस पर अधिकतर श्रद्धालु जानबूझकर कदम नहीं रखते। वे या तो उस सीढ़ी को लांघकर पार करते हैं, या फिर उसके किनारे से गुजरते हैं।
क्यों नहीं रखते श्रद्धालु तीसरी सीढ़ी पर कदम?
आस्था और मान्यता
स्थानीय जनमान्यता के अनुसार, तीसरी सीढ़ी स्वयं भगवान जगन्नाथ का प्रतीक मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि उस सीढ़ी पर भगवान के चरण पड़े थे और वह स्वयं उनकी उपस्थिति की प्रतीक बन गई। इसलिए, उस पर पैर रखना अपमान माना जाता है।
सीढ़ी में हैं भगवान के पवित्र अवशेष
एक और मान्यता के अनुसार, तीसरी सीढ़ी के नीचे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के “दारु ब्रह्म” (लकड़ी के दिव्य अवशेष) को गुप्त रूप से समाहित किया गया है। इसे “ब्रह्म पदार्थ” कहा जाता है, जो कभी भी जनता को नहीं दिखाया जाता और पीढ़ियों से इसकी रक्षा की जाती रही है। इसी कारण यह सीढ़ी केवल एक रास्ता नहीं, बल्कि एक पवित्र स्थान बन चुकी है।
परंपरा और सामाजिक शिक्षा
पुरी में जन्मे लोग बचपन से ही इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं। यह एक सामाजिक शिक्षा का हिस्सा बन चुकी है कि “तीसरी सीढ़ी पर कदम रखना पाप के समान है।” अतः यह परंपरा श्रद्धा से अधिक सम्मान का विषय बन गई है।
धार्मिक दृष्टिकोण से विश्लेषण
हिन्दू धर्म में कई ऐसे प्रतीक होते हैं जो सामान्य आँखों से देखने पर साधारण लगते हैं लेकिन उनके पीछे गहरे आध्यात्मिक अर्थ छिपे होते हैं। जैसे तुलसी को माँ माना गया है, वैसे ही जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी को भी दैविक माना गया है।
श्रद्धालु इस सीढ़ी को प्रणाम करते हैं, कुछ लोग उस पर पुष्प चढ़ाते हैं, तो कुछ लोग सिर झुकाकर उसे स्पर्श करते हैं — लेकिन उस पर पांव नहीं रखते।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुछ इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का मानना है कि तीसरी सीढ़ी के नीचे कोई खास धातु या संरचना हो सकती है जिसे पुराने समय में दैवीय तत्व माना गया। लेकिन इसका कोई ठोस प्रमाण आज तक नहीं मिला। यही वजह है कि इसे केवल आस्था का विषय मानकर श्रद्धालु इसका पालन करते हैं।
पुरी मंदिर से जुड़े अन्य रहस्य
- मंदिर का झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
- मंदिर की छाया कभी धरती पर नहीं पड़ती।
- मंदिर में पकाया गया महाप्रसाद कभी भी खत्म नहीं होता, चाहे श्रद्धालुओं की संख्या कितनी भी हो।
- इन सभी तथ्यों के साथ तीसरी सीढ़ी का रहस्य भी मंदिर की आध्यात्मिक गरिमा को और अधिक गहरा बना देता है।
पुरोहितों और सेवकों की भूमिका
मंदिर में कार्य करने वाले पुजारी, सेवायत और दायित्व निभा रहे स्थानीय जन, तीसरी सीढ़ी के प्रति विशेष सावधानी बरतते हैं। मंदिर में आने वाले नए श्रद्धालुओं को भी वे समझाते हैं कि कैसे इस सीढ़ी का आदर करना चाहिए।
मंदिर प्रबंधन द्वारा भी समय-समय पर सूचनाएँ जारी की जाती हैं, ताकि भक्त इस परंपरा का पालन करते रहें और इसकी गरिमा बनी रहे।
भावनात्मक जुड़ाव
कई श्रद्धालुओं के लिए यह केवल नियम नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव बन चुका है। बहुत से भक्त मंदिर में प्रवेश करते समय पहले तीसरी सीढ़ी को प्रणाम करते हैं, फिर अपनी प्रार्थना को मन में दोहराते हैं। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि भगवान स्वयं उनकी प्रार्थना सुन रहे हैं।
कुछ लोगों की तो यह भी मान्यता है कि:
“तीसरी सीढ़ी पर प्रणाम करके मांगी गई मुरादें कभी खाली नहीं जातीं।”
इस विश्वास ने इस सीढ़ी को एक पवित्र स्थल की तरह स्थापित कर दिया है, जहाँ भक्तों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं।
आधुनिक युग में भी कायम परंपरा
तकनीक और वैज्ञानिक सोच के इस युग में भी, जब कई परंपराएँ कमजोर हो रही हैं, तब भी जगन्नाथ मंदिर की यह परंपरा आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण है — भक्तों की गहरी आस्था और धार्मिक चेतना। युवाओं में भी इस परंपरा के प्रति उत्सुकता और श्रद्धा देखने को मिलती है। कई युवा ब्लॉगर, ट्रैवल व्लॉगर्स और यूट्यूबर पुरी जाकर इस रहस्य को दुनिया के सामने लाते हैं, जिससे यह धार्मिक ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचता है।
तीसरी सीढ़ी और “नवकलेवर” अनुष्ठान का संबंध
पुरी मंदिर में हर 12 से 19 वर्षों में एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान होता है, जिसे “नवकलेवर” कहा जाता है। इसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को नए ‘दारु’ (पवित्र लकड़ी) से बनाया जाता है।
इस प्रक्रिया के दौरान पुरानी मूर्तियों के “ब्रह्म तत्व” को निकाला जाता है और नए विग्रह में स्थानांतरित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस ब्रह्म तत्व को कुछ समय के लिए मंदिर की तीसरी सीढ़ी के पास रखा जाता है, जो इसे और भी पवित्र बना देता है।
निष्कर्ष
पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीता-जागता उदाहरण है। यहाँ की हर परंपरा, हर नियम एक संदेश देता है — श्रद्धा जब रहस्य से मिलती है, तो आस्था जन्म लेती है। जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर श्रद्धालुओं का कदम न रखना केवल एक प्राचीन परंपरा नहीं, बल्कि गहरी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भारत की आस्थाएँ केवल मूर्तियों तक सीमित नहीं, बल्कि हर उस स्थान तक फैली हैं जहाँ भक्तों को ईश्वर की अनुभूति होती है।
अगर आप कभी पुरी जाएँ, तो तीसरी सीढ़ी के इस रहस्य को अनुभव करें, सिर झुकाएँ, और उस दिव्यता को महसूस करें जिसे सदियों से न केवल ओडिशा, बल्कि पूरे भारत ने अपने हृदय में स्थान दिया है।